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इज्ज़त जो बक्षी है आपने ये क़र्ज़ मैं कैसे उतरूं
दूर था सदियो से अब इसकी वजाह मैं किसको बाताऊ
न जेना कैसे जीया मैं वो दिन बिन तेरे मैं
अब ज़िंदगी को तेरे क़र्ज़ का हिसाब बताऊं भी तो कैसे
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