Saturday, May 30, 2009

सपनो से भरे मेरी रातें...

एक अजीब और बुरे सपने ने मुझे उठा दिया। कूलर की ठंडी हवा ने जैसे मेरा गला दबाने की कसम खा राखी थी । मैंने तुंरत पानी की दो घूँट हलक मे डाली और खुदको अकेले महफूज़ पा कर आश्वस्त हुआ। पर जाने क्यों मुझे कुछ दिनों से ऐसे सपने आ रहे हैं । क्या कुछ बुरा होनेवाला है और ये सब उसकी पुर्बाभास है । मैं तो सच मैं डरा हुआ हूँ। अभी तो कुछ भी ठीक नहीं चल रहा और अगर ये कुछ गड़बड़ होगा तो ठीक नहीं होगा । वहाँ माँ ने भी कुछ ऐसा ही सपना देखा तो सुबह फ़ोन किया था । क्या है ये क्यों ऐसा हो रहा है । मैं तो सच मैं दारा हुआ हूँ। बस एक गुजारिश है भागवान से के कुछ बुरा न हो किसी के साथ।

Monday, May 18, 2009

Farewell to Parmod Sir

It gives me immense pleasure to inform you all that the Management team has decided to promote Parmod basis his successful and restless journey of supporting HP customers’. He joined us on 6th Jun 2003 as a FLA and now leaving the same growth path behind for you to follow, Inbound FLA à Outbound FLA à Outbound TL à Call Center TL à Now, ASM. He got several promotions during his tenure besides recognition from all the corners. It was his zeal to do better and better, which elongated his stay and finally made him responsible to look after different businesses.

First, he made HP customers’ to speak about his outstanding performances and then he took a challenging profile of managing Operations which made our client, Hewlett-Packard to praise his fruitful efforts.

Basis his satisfactory services rendered during the period of 6th Jun 2003 – 15th May 2009 (Approx. 6-yrs), Parmod will take charge of our Gurgaon SC with effect from 16th May ’09. Therefore, let’s wish him a successful and smooth journey ahead.


Dear Parmod,

Hearty congratulations for bagging this designation, which is a pack full of responsibilities!!!

We are sure that the zeal in you to produce better and faster results will intensify with the passage of time and you will achieve more milestones in the years to come. You have very well proven the proverb that “Old is Gold”, so keep glittering basis your remarkable performance.

All the best and take your SC to the new heights of success!!!
Regards,
Manager.





Posted by Picasa



Posted by Picasa



Posted by Picasa



Posted by Picasa



Posted by Picasa



Posted by Picasa
Posted by Picasa

MARADONA, the legendary Football Player




Posted by Picasa

MARADONA, the legendary Football Player.




He is the undisputed king in the Game of Soccer
Posted by Picasa

Tuesday, May 05, 2009

शिर्डी के साईं, मेरे साईं





८ अप्रेल २००९ की बात है। मे ऐसे ही किसी सोच मे डूबा था और अचानक प्रमोद सर ने कहा के चलो शिर्डी साईं के दर्शन कर आते हैं। शायद हमारी बातें साईं ने सुन ली और बाबा ने हमें शिर्डी बुला लिया। मैंने तुंरत तपन को जाने के लिए पूछा तो वो भी तैयार हो गया तो मैंने बिना देरी किए २८ अप्रेल की जाने की टिकेट बुक कर लिया। क्यों की पहली मई को श्रमिक दिवस के उपलक्ष मे छुट्टी घोषित हुई थी मैंने ३ दिन का प्रोग्राम बना लिया। अब जाने की टिकेट तो थी हमारे पास मगर आने की टिकेट मिली नहीं। मैंने सोचा था कोई जाए या न जाए मे तो चला ही जाऊंगा। वक्त किसके लिए रुकता है । देखते ही देखते २७ अप्रेल aa गयी और हम तीनो अगले दिन सुबह निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन पे मिलने के वादे के साथ अपने अपने घर को निकल गए। मुझे याद है मे रात को सो नहीं पाया था इस खुसी मे के मैं कल शिर्डी जा रहा हूँ हूँ और मैं सोते सोते अपनी लिस्ट बना रहा था के मैं बाबा से क्या मांगूंगा। अगले दिन सुबह तैयार होके दो चार कपड़े बैग मैं भरे और स्टेशन की तरफ़ हो लिया। उस तरफ़ तपन भी पुरे तयारी के साथ ( तयारी मतलब खाने पीने की चीज़ों के साथ) स्टेशन मैं पहंच गया था । अब इंतज़ार था तो बस प्रमोद सर की आने का। घड़ी की सुइयां ट्रेन की जाने का इशारा कर रहे थे मगर प्रमोद सर हैं की कभी चिराग दिल्ली तो कभी नेहरू प्लेस मे ट्रैफिक मे फसे पाए गए। अब ट्रेन की जाने का टाइम हो गया परन्तु बाबा की मैहर देखिये उस दिन ट्रेन ही लेट चली और बड़े मुश्किलों के बावजूद प्रमोद सर पहंचा गए तो पता चला के ट्रेन आधे घंटे देरी से चली। हम तीनो पहली बार शिर्त्दी जा रहे थे और क्यों की हम शिर्डी जा रहे थे मन मे एक अजीब सी उमंग और एक आस्था की भावना हमारे दिल मे एक संतुष्टि का एहसास दिला रहा था। हमें रस्ता तो पता था मगर जगह भी अनजान था। पर हमारे दिल मे एक उत्साह और भक्ति भावः हमें बाबा की और खींचे लिए जा रहा था। इस धुन मे हमने कब १३२० किलोमीटर का सफर कैसे कटा पता ही नहीं चला। और साथ मे प्रमोद सर हो तो फिर एन्तेर्तैन्मेंट तो निशित था। उन्होंने अपनी ही अंदाज़ मे राजनीति और आम चुनाब से लेके देश के बिभाजन और अंग्रेजों की नीतियों की खूब आलोचना की। उनकी निशाने पे कभी गांधीजी, कभी मायाबती तो कभी बाबा साहेब आंबेडकर दिखे। एक बात तो तय है की प्रमोद सर को इतहास और उनमे हुए घटनाचक्र मे कुछ खास लगाव है और उनके पास मौजूद रोमांचकारी तथ्य थे जिनके वजह से वो हम दोनों साथ साथ बाकि अन्य यात्री जो की हमारे कोम्पर्त्मेंट मे सफर कर रहे थे उनका भरपूर मनोरंजन कर रहे थे। एक आरामदायक २४ घंटे के सफर के बाद हम अगले दिन सुबह सादे आठ बजे कोपर्गओं पहंच गए। स्टेशन पे उतारते ही हमने सफर को यादगार बनाने हेतु दो चार फोटो खींचे और आगे बढ़ गए। वहां से हमें शिर्डी जाना था तो हमने साधन ढूंडा तो हिंदुस्तान का अजूबा ” ऑटोरिक्शा” वालों का एक झुंड हमें अपनी गाड़ी मे ले जाने के लिए हमार और बढ़ा। बड़ी मुश्किल से इज्ज़त बचाते हुए हमने एक ऑटो मे सबार हो गए। वहां उस ऑटो मे हमें हरयाणा, अम्बाला,होडल और उसके आस पास के कुछ उत्तरभारतीय भी मिल गए तो सफर कुछ जाना पहचाना भी लगा। बाबा का जय जयकार करते हुए हमने शिर्डी की तरफ़ अपना रूख मोड़ दिया। ऑटो मे एक जिज्ञाशु व्यक्ति के साथ बातचीत मे पता चला के उनके सुपुत्र infosys मे कार्यरत हैं और उनकी मासिक बटन ८०हज़ार है। वो एक आम हिन्दुस्तानी पिता थे तो उनके द्वारा अपने सुपुत्र का गुणगान सुन ने मे हमें कोई संकोच न था। उल्टा चुप चाप ऑटो मे उनकी आवाज़ हमें याद दिलाता रहा के हमारी इन्द्रियाँ अब भी काम कर रही है। सड़क के दोनों तरफ़ हमें सिर्फ़ साईं का ही नाम दिख रहा था जैसे की साईं कृपा होटल, साईं धाम धर्मशाला, साईं कुटीर ,साईं भोजनालय। ऐसा लग रहा था जैसे मिटटी से लेके सूरज तक सब साईं के गुणगान मे झूम रहे थे। करीब नौ बजे हम शिर्डी पहंचा गए और एक हेल्पर की मदद से होटल मे एक कमरा भी ले लिया। अब ५० डिग्री तापमान की तपती गर्मी का १३२० किलोमीटर का थकान बाथरूम की ठंडे पानी ने कुछ कम कर दिया। बिना समय व्यर्थ किए हमने पूजा की थाली लेके मन्दिर की और बढ़ गए। हमारे पैर जैसे अपने आप भाग रहे थे साईं के अनमोल दर्शन को। महाराष्ट्र सरकार की आम छुट्टी के कारन साईं के दरबार मे स्थानीय लोगों का एक अजब भीड़ से हमारी मुलाकात प्रतीक्षा कक्ष्या मे हुआ जिसमे जादातर लोग कोई न कोई दक्षिण भारतीय भाषा बोल रहे थे जो की हमारी समझ के परे था। पर सब लोग एक ही स्वर मे साईं सुरबर के गुणगान मे व्यस्त थे। हमने भी उस राग मे अपनी आवाज़ समर्पित करते हुए साईं के गुणगान मे जुट गए। साईं के दरबार मे अन्य मंदिरों से अलग हमें प्रतीक्षया कक्ष्या मे श्रद्धालुओं के लिए किए गए इन्तेजाम बहुत अच्छा लगा। जगह पर जहाँ टेलिविज़न से साईं की स्वरुप का दर्शन मिल रहा था वहां भक्तो के लिए शीतल जल और सौचालय का भी व्यबस्था थी। जो एक चीज़ सब को बिचलित करती रही वो थी अपने पारी आने तक करने वाला वक्त का इंतज़ार। जैसे एक परीक्ष्या थी जहाँ सद्यजात शिशु से लेके ज़रायु तक सरे भक्त साईं के एक झलक हेतु प्रतीक्षारत थे। इन सब के बीच साईं बबा की जय और साईं महाराज की जय की ध्वनि पुरे बातावरण को दिव्या और अलौकीक बना रहा था। इस बीच साईं के आरती का समय हुआ तो सरे भक्त एक सुर मे साईं के भजन गेट हुए मिले। लगभग ४ घंटे की प्रतीक्षा के बाद हमें मुख्या दरबार मे उपस्थित होने का सौभाग्य मिला और क्या था चारो और सैनाथ की जय की धुन से भक्त अपने साईं से मिले। कहीं कोई अपने हाथ ऊपर उठाके खुदको साईं के शरण मे जाने को तैयार था तो कोई हाथ जोड़ के अपनी गुहार लगा रहा था। कोई सस्तंगा प्रणाम कर रहा था तो कोई उठक बैठक कर के अपनी गुनाहूँ की माफ़ी मांग रहा था। भक्त और भगवन के बीच एक अजीब आन्तरिकता जैसे सब के सर चढ़ कर बोल रहा था। हमने भी अपनी कहाँ इस साईं को केह दी और अपनी कृपादृष्टि बनाये रखने की गुजारिश की। अचानक भीड़ को काबू करने हेतु कार्यरत सुरक्श्यबलो ने हमें वहां से खदेड़ दिया और हम बिबस होके मन्दिर से बहार अरे गए। दोपहर के सादे तीन बज रहे थे और पेट मे चूहों ने जैसे बिल ही बना ली थी। वहां से हम एक भोजनालय मे खाना खाया और होटल को वापस चल दिए। क्यों की हमें उसी दिन वापस आना था तो हमने फिर पैकिंग की और कुछ खरीददारी करे निकल पड़े। वहां से हमने साईं की मूर्ति और प्रतिमाएं खरीदी और कोपरगाँव की तरफ़ चल पड़े। अब हमारे पास ना आने का टिकेट थी न ही कांफिर्मेशन। हमने तय किया के साईं का नाम लेके ट्रेन मे चढ़ जाते हैं जो होगा देखा जाएगा। फिर हमने चालू टिकेट ली और ट्रेन मे चढ़ गए। पर साईं की महिमा देखिये हमें किंचितमात्र भी असुबिधा नहीं हुई और हम सकुशल दिल्ली पहंच गए… फिर हमने साईं का नाम लेते हुए अपने अपने घर को चल दिए…