यह चेन्नई मैं मेरी पहली शर्दी है ... हलाकि मैं पिछले साल भी यहीं था मगर मैं शायद इस जलवायु मैं ठीक से अपने आप को ढाल नहीं पाया था. आज कल यहाँ सुबह की नींद बड़ी मजेदार लगती है और बिस्तर छोड़ने को मन नहीं करता.पर क्या करें सुबह सुबह ऑफिस भी तो जाना है ना तो उठाना पड़ता है.हाला की मेरे ऑफिस की कार्यकालिनी समय सुबह ९ बजे से लेके शाम के ६ बजे तक है मगर मैं क्या कहूँ मुझे अपनी आप पे शर्म अति है ये कहते हुए की मैं रोज़ १०- १०.३० से पहले ऑफिस नहीं पहंच पाता था.और क्यों की मैं खुद मानव संसाधन बिभाग मैं हूँ तो मुझे बड़ा अटपटा लगता था और शर्मिंदगी भी लगती थी. खैर एक दिन मेरे अन्दर का शेर जाग गया अचानक और मुझे बोला के बेटा अब उठ जा और कुछ जुगाड़ कर. तो मैंने पिछले रविवार को ही बाज़ार गया और एक अलार्म वाली घडी लेके आया.वैसे उसकी कुछ आबस्यक्ता नहीं थी क्यों के मेरे घर के पास वाली चर्च से हर एक घंटे मैं अलार्म बजता रहता है. मगर क्या करें कुछ करना जो था, तो मैने एक बजने वाली घडी ले आया और उसे सबसे अधिक आवाज में चालू करके सो गया. सुबह ६ बजे जैसे ही वो बजा मैं उठ खड़ा हुआ. सुबह की शांत बातावरण मैं मुझे ऐसा लगा की अभी मेरे अपार्टमेन्ट के सारे लोग मेरे घर आएंगे और मुझे उस घंटे की तरह बजायेंगे. कारण यह था की घडी बहत जोर से बजा ( Maximum Volume set). खैर कोई नहीं आया मगर मैंने आवाज़ थोड़ी कम कर दिया और उठके तयार हो गया और ऑफिस के लिए निकल पडा. मुझे बड़े दिनों के बाद टाइम से पहले अत देख सब चौंक गए और ये मुहे बड़ा अच्छा लगा. तबसे उस ५५० रुपये की घडी के खातीर मैं अब टाइम से उठके ऑफिस पहंच जाता हूँ ...
सारांश
- जब तक अन्दर का शेर नहीं जागता तब तक कोइ काम नहीं होता
- जब तक घंटा नहीं बजता नींद नहीं खुलती
- जब तक पैसे की चपत नहीं लगती तब तक दीमाग भी काम नहीं करता
खैर छोडियी ये सब पागल्पंती और फालतू बातें और बताईये आप तो ऑफिस टाइम से पहंच जाते हैं ना...?
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