Wednesday, January 16, 2013

Eye of the tiger...

After a long time I am feeling little low as I am just finding a way to react to this lost emotion. Days were there wherein I could just leave for a quiet place away from all noise and sit in a corner and think of all the good things in life and so on. But days are like years today and I am not getting a better smile from people around me too. When you are at a low you feel everybody to be at your service and to console you. Don't know why these emotions are made like this and why the human psychology is so.

Can't blame anyone for the things I have done and for the condition, hence need to introspect and come out. May be there is a bad day for everyone wherein strong people keep quiet and pull up the inner strength to fight back and come clean. My mind always been a lone soul and has managed to get itself settled down with less damage. 




Its time to remember the eye of the tiger and the good old days. 

Tuesday, January 15, 2013

Mahakumbh...

The whole day yesterday the news channels read a news and it was about the crowd gathering at the Sangam in Allahbad for a holy dip. I was just wondering how in this IT yuga people in such huge numbers have faith and do such dip to get Moksh. It is according to the Hindu calender that the Mahakumbh comes once in every 12 years and during this time lakhs of devotees plunge into the sangam to take bath and to get rid of all Sins & get moksh. Its is said that a dip into the sangam will make you free of all sins and confirm moksh for you. And on this belief not only the saits of different akhadas but also the common man leave all worries aside and take a dip. It was really amazing to see the akhadas coming in processions in different attires with horses, Raths, with display of arm and ammunition and finally taking a dip at the sangam. The Nagas, nirmohi and juna akhadas are few to name the popular attractions.Its reported that on the first day of the 10 day long Mahakumbh approximately 82 lakhs of devotes have taken dip in the Mahakumbh. Many has named this as the world's biggest festival and religious occasion. With huge arrangements for security and media persons the local govt is wishing all devotes a happy Makar sankranti. 
Now when the scientists have ruled out that the water is dangerous for even mouth-washing people expect it to make them free of all sins. It may be looking funny to many but its the age-old belief that is still bringing cores of people for this Kumbh dip. My question would be how to maintain our river banks and the water appropriate for all these holy baths and out of pollution. The water in the Ganga in rishikesh is not usable for drinking and the jamuna in Delhi too is not usable and then how we can use it in Allahbad. There is a committee for the up-liftment of the Ganges and so as for other important rivers too , but where is the action on this. Its time too late for us to take any action on maintaining the purity of the rivers. May we not take care of the concerns now time may come that on a kumbh of such occasion we may not have water but instead it will be garbage to dip in. 

May Mahakaal give strength to the belief of taking dip in to sangams and to maintain the purity of the holy rivers too. 

Sunday, January 13, 2013

गणतांत्रिक संबिधान के बिकल्प

पिछले महीने दिल देहला देने वाले एक किस्से ने मुझे क्या सार देश को हिल के रख दिया। जी हाँ मैं बात कर रहा हूँ राजधानी दिल्ली में हुए सामूहिक बलात्कार के बारे मैं। इस पूरे घटना मैं आम आदमी से लेके सांसद और मंत्री तक सबने आपत्ति जाहिर किया और प्रमुख सेहेरों मैं तो इसके खिलाफ प्रदर्शन और नारेबाजी भी हुई और अब भी हो रहा है। इसी बीच पीड़ित महिला ने दम तोड़ दिया और पूरे ब्यबस्था और हमारे सामाजिक चाल चलन पर एक बड़ा सवालिया निशाँ छोड़ गयी।  वो भी देश की राजधानी मैं जहां सारा न्यायतंत्र को चलाने वाले बैठे रहते है। 

दुख इस बात का है की जब सारे लोग भिन्न भिन्न तरीके से अपना विरोध व्यक्त करते है तभी कुछ ऐसे भी बेबकूफ लोग भी है जो की बिना सोचे समझे कुछ भी बोल देते है और बाद मैं माफ़ीनाम भी पढ़ लेते है। ऐसे बोले वाले और कोई नहीं कुछ सिरफिरे मंत्री और बिधायक ही है। सत्ता का बल कहें या फिर उनका गरूर कहें इस प्रजाति के प्राणी जाने कब ऐसी घटनाओं को समझेंगे। यूँ तो हम अपने आप को 21बी सदी के  आईटी युग के modern  लोग कहते है और काम करते हैं आदि मानव की तराह।

इसके प्रतिकार क्या है इस सवाल के मुझे बहत सारे जवाब मिले ; जैसे की अपराधी को फंसी दे दो या फिर जिंदगी भर के लिए नपॊन्शक बना देना वगेरा वगेरा। पर क्या सभ्य समाज मैं ये संभव है और है भी तो क्या हम एक सामजिक तरीके इसका सही उपयोग कर पाएंगे। 

अब समय आ गया है के हमें कुछ शक्त कानून बनाएं और ऐसी सामाजिक समस्याओं को शक्ति से निपटे। आंबेडकर की लिखी हुई कानून बाबा आदम की जमाने की थी जीपे चलके हमारे न्यायलय मैं आज 20लाख केस फाइलों मैं दबी है और इनकी तादात दिन बा दिन बढ़ ही रही है। अभी हमें कुछ अलग सा करना होगा और जाने कई सालों से फाइलो मैं बंद पड़ी केस को खोल के सुनवाई भी हो।

और एक बात कहना चाहूँगा के आज कल जब हम अपने आपको इन्टरनेट और तकनिकी ज्ञान का भडार मानते है बलात्कार जैसे घिनोने अपराध क्यूँ बढ़ रहे है। इसके सन्दर्भ मैं बहत लोग है जो की देह ब्यापार को कानूनी जमा पहनाने की वकालत करते है और कुछ तो इसके लिए फांसी जैसी सजा का भी पक्ष  मैं है। मेरे ख़याल मैं अब समय आ गया है की हमें सेक्स के बारे  मैं चर्चा करना चाहिए और सारी  जानकारियाँ उपलध कराना चाहिए। वैसे भी यह सब उपलब्ध है पर हमें सेक्स एजुकेशन को नियमित रूप से स्कूल और कॉलेज मैं लागू करना होगा।

यह तो थे कुछ प्रिवेंटिव एक्शन पर अगर ऐसा कुछ होता है जो की दिल्ली में हुआ या फिर और किसी सेहर में होता है तो सबसे ज्यादा जो उटपटांग होता है वो है इसके ऊपर बयानबाज़ी। चाहे वो मंत्री हो या वो जो अपने आप को धर्मप्रचारक कहता है वो भी बाज़ नहीं आते। बिषय की गंभीरता से परे मूह खोल देते है और कुछ ऐसा बोल जाते है की बाद मैं माफीनामा भी पढने को हिचकिचाते नहीं। ऐसे मूर्ख इंसानों की तादात आजकल कुछ ज्यादा है। और  IT  के इस जमाने मैं जहां Information  चुटकी मैं हजार मील की दुरी तय कर लेता है इस सब मूर्ख लोगों की बात आम आदमी तक पहंच जाती है। हम एक गणतांत्रिक देश है जहां अपने विचार व्यक्त करने का अधिकार सबको है पर ऐसी घटना के ऊपर अपनी गन्दी सोच और जवान का उपयोग करके शीर्षक बनना एक कुत्सित अभिलाषा से ज्यादा और कुछ नहीं। मेरे हिसाब से हो जाये कुछ बलात्कार ऐसी नेताओं के परिजनों के साथ तो फिर शायद इन्हें इसकी गहराई की समझ आये।

मैं किसी पक्ष के साथ नहीं हूँ और ना ही किसी से डरता हूँ मगर मैं इस बर्बरता के खिलाफ हूँ और इसकी निंदा करता हूँ और चाहता हूँ की हमारी गणतंत्र मैं ऐसी घटनाओं से निपटने हेतु शक्त से शक्त प्राबधान हो और नारी और पुरुष सभी सुरक्षित और खुशहाल हो।

जय हिन्द ...