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Friday, August 08, 2008

एक सावन बसा रखा है


वही श्याम वही रात और वही चांदनी

कुछ अलग है तो बस, ये बहती आँखें

इनमे तन्हाई और चाहत मे का बसेरा ...

कितने गुज़रे पर आज भी एक सावन बसा रखा है