Monday, September 01, 2008

जा रही है मोहब्बत अब ख़ुद छोड़ के हमें ....

ख़याल उनका दिल मे आया तो पूछा किए, के ज़िन्दगी इतनी खामोश क्यों हैं
कमबख्त दिल से आवाज़ आई के खामोश मोहब्बत की मंजिल ही क़यामत है
क़यामत की डर से कांपती अपनी रूह से रूबरू जब मैं ऐसे हुआ
सिसकी भरी आवाज से कहानी बयान कुछ मुझसे ऐसे हुआ ...
जाने कैसे ये एह्साह ज़िन्दगी का मैं जीता हूँ रोज़,मुझसे न पूछना
ज़िन्दगी को कैसे धोखा देता हूँ,है एक राज़ इसका भेद ना पूछना...
उनका ये पूछना के जरुरत अब ना रही मोहब्बत की हमें
एक पल को लगा के जा रही है मोहब्बत अब ख़ुद छोड़ के हमें ....

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