गर हो तुम दहशत मे तो पनाहों मैं आओ
और हो शिकस्त से परेशान कभी तो आँखें हमसे मिलाओ
न होगी कभी किसी भी सुलतान से शिकस्त कभी
है एक अजूबा ऐसा, एक तिलिस्म तुम तोहफे मे ले जाओ.
न करे खुदा के पड़े जरुरत हमारी भी कभी तुम्हे,
बस एक आवाज़ देना,और देखना तमाशा तुम
कब्र की दीवारों से भी तुम्हें ललकार सुनाई देगी
और हर मंज़र हर पल तुझसे खुद की खैर मांगेगी ...
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