Thursday, September 04, 2008

तेरे बगैर

कितनी सुनी है ज़िन्दगी ये तेरे बगैर
हर कहानी जैसे है अधूरी तेरे बगैर
जीत लेता हूँ सारी दुनिया अकेले यूँ मगर
उस जस्न की रौशनी क्या एक तेरे बगैर
सुकून का सफर थी जब साथ था कभी मैं तेरे
अब ये मौत का मंज़र भी क्या तेरे बगैर
जाने क्यों जी रहा हूँ मैं यूँ तेरे बगैर
शायद मौत को भी नापसंद मैं तेरे बगैर

No comments:

Post a Comment