कल खबरों ने दिल को देहला दिया। विश्व हिंदू परिषद् के द्वारा किया गए बंद के कारन राजधानी दिल्ली मैं साधारण जनजीवन अस्त व्यस्त हो गया। आम आदमी जो की निजी काम के लिए घर से बहार आया था इस बंद के कारन हैरान और परेशान दीखा। यहाँ तक तो ठीक है क्यों के गांधीजी ने भी ऐसे ही अहिन्षा के अस्त्र अपना कर अपने आन्दोलन आगे बढाया था। पर ये कैसा बंद था जिसमे स्वास्थ्य से पिडीत व्यक्ति विशेसों को चिकित्षा से बंचित कर उन्हें मृत्यु के आधीन कर दिया। कल जैसे मैं उन लोगों के प्रति अपने क्रोध व्यक्त अकरने हेतु अक माद्यम की तलाश मैं था। पर सत्ता और आसन के मोह मे अंधे कुछ अमानुषों के कारन कल दो लोगों को अपने जान से हात धोना पड़ा। उनको समय पर शिकित्सा उपलव्ध किया जाता तो शायद वो अभी जीवित होते। पर धर्म के आड़ मे कुछ अमानुषों के कारन आज वो नहीं रहे। क्या कोई धर्म ये करने को अनुमति देता है । किसी भी धर्म और प्रथा मनुष्य के मूलभूत जरूरतों से अधिक नहीं है । जहाँ लोगों को दो वक्त का खाना और पीने को स्वचा पानी न नसीब हो उनके लिए धर्म और व्यवहार कितने गुरुत्वपूर्ण हैं। बहुत बार ऐसा हुआ है के मनुष्य अपनी स्वार्थ और प्रगत्ति के लिए दूसरो के मनावाधिकरों को पैरों से रोंद कर जस्न मनाता है । हम आज पुरे विश्व मैं शान्ति प्रिय देश के रूप से जाने और माने जाते है। पर कुछ ऐसे घटनाये हमारे सुनहरे व्यक्तित्य पर एक लांचन नहीं है । जब सारा विश्व प्रगति के पथ पर हमारे राह को प्रशंशा के चक्षु से निहार रहा है क्या हमारे सामाजिक मूल्यबोध हमसे dur हो रहे हैं। मैं नहीं जानता के कौन सा धर्म क्या है और क्या करने को उत्साहित करता है पर हाँ इतना तो तय है की मनुह्स्य जीयेगा तो ही धर्म kaa पालन और उसका निरबाह करेगा । मैं शर्मसार हूँ कल के घटना जिसमे दो अमूल्य जीवन चिकित्सा से dur और विश्व हिंदू परिषद् के अमानविक व्यवहार से मृत्यु को प्राप्त हो गए। इसका मैं भारी मन से निंदा करता हूँ...
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यह चेन्नई मैं मेरी पहली शर्दी है ... हलाकि मैं पिछले साल भी यहीं था मगर मैं शायद इस जलवायु मैं ठीक से अपने आप को ढाल नहीं पाया था. आ...
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After years I tried my hands in writing a letter in Odia and believe me it was difficult to write as the finger movement needed much to w...
फ़िराक़ ने कहा है:-
ReplyDelete'मज़हब कोई लुटा ले और उसकी जगह दे दे
तहज़ीब सलीके की, इँसान क़रीने के'