Saturday, July 12, 2008

ख्यालों मैं


एक बार मैं एक लड़की से मिली ... एक ही बार मे मुझे लगा कुछ chemistry हैं दोनों के बीच मैं । कहीं दिल मे या दीमाग मैं जैसी घंटी सी बजी। मैं तब तक इन सब चीज़ों से कोसो दूर था। पर उस दिन लगा के नहीं ये भी जिंदगी का एक रूप है । पहले koshish किया था से चीज़ के लिए पर कुछ जमा नहीं । सारे लको की तराह मैं भी चांस मरने लगा था । जहाना भी कहीं उम्मीद की किरण दिखती मैं मैं सबसे पहले गोटा लगा देता। पर पता चला पानी ही कम है और वैसे भी मेरा हेईघ्त भी चोटी है । एक बार को लगा के मैं इसके साथ भी वैसा ही करूँ जैसा मैके करता था . पर पहली बार ही और एक भी बार मेरा मन नहीं मन . तो मने ये सब सोचने का ही ठीक नहीं समझा और उसकी निगाहूँ मैं अपने आप को खोना अछा समझा और बस डूबता ही चला गया। मैंने कबी ये नहीं सोचा के आगे क्या होगा या नहीं । मैं सोच कहाँ पाया औ तब मैंने दिल्लगी को महसूस किया और समझा के ये kya चीज़ है और क्यों इंसान इसमे अँधा हो जाता है । मैं भी खो गया कहीं उसकी झील जैसी निगाहूँ की गहराईयों मैं । मुझे लगा के ये शायद यही है जिसकी मुहे बरसो से तलाश थी औ मैं इस के लिए और ये मेरे लिए ही बनी है । मन कहाँ सोच पाया के आगे kya होने वाला है या हो सकता हैइस। मैं तो बस प्यार करता गया । रातों की नींद गवई , दिन का चैन भी खोया और जाने kya kya खोया मैं । पर इन सब के पीछे मैं एक हमसफ़र प् गया। है अलार्म बज गयी मैंऐ कहा काश कुछ देर ही सही और सपना ही सही इस दिल को सुकून मिलता।

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