मेहेज़ मुझसे मिलने वो रोज़ अति है
और मेरी मोहब्बत को कुछ लम्हों से तौलती है
मैं तो भूखा हूँ प्यार का परजाने क्यों वो रोज़ दिलसे मुझे परखती है।
शायद दिल मे ओसके कोई राज़ सी है
पर जाने क्यों वो रोज़ मुझसे कई सवाल पूछती है।
मिलने को तो मैं ओस रोज़ तरसता हूँ
आती भी है वो पर रोज़ मैं ओसके साथ को तरसता हूँ। तोहफे भी बहुत वो लाती है
पर एक बस मुस्कान अपनी वो कहीं भूल आती है
शायद फ़र्ज़ समझती है अपनी तभी
मेहेज़ मिलने मुझसे वो रोज़ आती है।
बंद इन दरवाजो सो जो मन मेरा न भरे तो यादें ओसके ओढ़ लेता हूँ।
तभी शायद खुदसे दूर मैं ओसकी साथ को तरसता हूँ….
मिलने को तो मैं ओस रोज़ तरसता हूँ
आती भी है वो पर रोज़ मैं ओसके साथ को तरसता हूँ। तोहफे भी बहुत वो लाती है
पर एक बस मुस्कान अपनी वो कहीं भूल आती है
शायद फ़र्ज़ समझती है अपनी तभी
मेहेज़ मिलने मुझसे वो रोज़ आती है।
बंद इन दरवाजो सो जो मन मेरा न भरे तो यादें ओसके ओढ़ लेता हूँ।
तभी शायद खुदसे दूर मैं ओसकी साथ को तरसता हूँ….
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