बारिश की महीन फुहारों में जब तन मन भीगे जातें हैं उनकी खामोश निगाहों के वो पल तो ही तरसाते है क्यों बोल नहीं सकते है वो क्या अजब है उनकी ख़ामोशी हम चुप्पी की भाषा सुनकर बस मन ही मन इतराते है वो हवा हवा ही रहते है और आस पास मंडराते है जाने उनके दिल में क्या है पर हमको बहुत सताते है पर हमको बहुत सताते हैं
बारिश की महीन फुहारों में
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उनकी खामोश निगाहों के
वो पल तो ही तरसाते है
क्यों बोल नहीं सकते है वो
क्या अजब है उनकी ख़ामोशी
हम चुप्पी की भाषा सुनकर
बस मन ही मन इतराते है
वो हवा हवा ही रहते है
और आस पास मंडराते है
जाने उनके दिल में क्या है
पर हमको बहुत सताते है
पर हमको बहुत सताते हैं