मैंने कब कहा था की दूर इतना तुम चले जाओ
और बैठे हो बनके हूर जो मेरे खयालो मैं वहां से जाओगे कैसे
जो मैं करलूं बंद पलकों को तो ख़ुद मैं समलू तुम्हें
मेरे इन तरसती पलकों से बच के रहोगे तो कैसे
है रिश्ता एक पुराना अपना जैसे मैं ज़िन्दगी और तुम सासें
ख़ुद को आजाद मेरी जिस्म से करोगी तो भी कैसे ,...
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