Thursday, November 27, 2008

एक दुआ अपनी, मैं कबूल करा लेता हूँ...

ना हूँ मैं पुजारी,ना भगत, और ना ही करता मैं पूजा किसी की
मजबूर सिर्फ़ आदत मांगने से मैं द्वार उसके खींचा चला जता हूँ ।
फैलाके और झोली अपनी अरमान मेरे बयान, कुछ यूँ करता हूँ
प्यारे मेरे मालिक से रोज़ दुआ एक अपनी मैं यूँ कबूल करा लेता हूँ ...

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