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माना खुदा मोहब्बत को अपनी तो क्या खोया और क्या पाया
यूँ तो लोग बूंद को तरसते रहे और मैंने है समंदर पाया
भले बिछ्डके आज उससे हूँ तनहा और जिंदा भी तो क्या हुआ
मरके कभी देख साकी मोहब्बत मैं तुने, क्या खोया और क्या पाया ...
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