आज मैंने अखबार में एक खबर पढ़ी के ३० जून के बाद चवन्नी नहीं चलेगी... अचानक यादों का एक पन्ना मेरे खयालो की खिड़की से झाँक कर मेरे चेहरे पे एक हसी बन के छा गई. उड़ीसा प्रान्त का मैं रहने वाला हूँ और मेरे यहाँ शिव मंदिरों मैं हम राउल लोग ही पूजा करते हैं. सदियों से हमारी बारियाँ आपस मैं बिभाजित की गयी हैं और जब भी हमारी बारी आती थी तो हम बच्चे भी उत्साहित हो जाते थे. और ये भक्ति भाव से नहीं होता था पर इसलिए होता था के हमें दक्षिणा के स्वरुप पैसे मिलेंगे. और हमारे नानाजी जो छुट्टे मिलते थे उसे हम बच्चो मैं बाँट दिया करते थे और तभी एक चवन्नी की महत्वा बहत ज्यादा हुआ करता था. जिसके पास जितने छावनी हुआ करता था वो उतना खुश हुआ करता था. क्या बात थी उन दिनों की... दिन ब दिन हम बड़े हुए और पैसे की कीमत को ज्यादा अच्छी तरह से समझने लगे और आज कल अच्छा खासा कमा भी लेते हैं मगर उन चवन्नियों की कीमत आज भी अमूल्य है.
मुझे याद गौ की कुछ साल पहले ( करीब ६/७ साल) मैंने चवन्नी देखि थी मगर वो आज तक चलती थी मुझे नहीं पता था. हाँ ये हो सकता है की छोटे सेहर और गाँव में चलती हो मगर महानगरों से तो इसका बिसर्जन बहत पहले हो गया था. वैसे भी आज कल मेहेंगाई जिस उंचाई पर पहंच गयी है मुझे शक है की चवन्नी की कीमत क्या होगी... खैर हनुमान जी की पूँछ की तरह दिन ब दिन बढती हुई महंगाई ने हमारा तो जीना बेहाल कर दिया है पर चवन्नी बच गई ....
भगवन चवन्नी को शांति प्रदान करें ...
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