आज उड़िया बर्ष के आसाढ़ मॉस शुक्ल पक्ष्य द्वितीया आज के दिन जगत के नाथ जगन्नाथ महाप्रभु जाती भेद धर्म और संस्कृतियों से ऊपर जाके अपने श्रीमंदिर के रत्न सिंहासन से उतरके भक्तो के लिए बहार आते हैं और अपने भक्तों को आप्यायीत करते हैं। ये संस्कृति जगन्नाथ संस्कृति है जहाँ कोई बड़ा नहीं है ना कोई छोटा है ना कोई रजा है और ना कोई रंक है। यहाँ रजा भी रथ के झाडू करते हैं और रंक भी रजा के साथ भगवन को आलिंगन करता है। हजारो बरसो से ये यात्रा रथ यात्रा के नाम से पूरे बिश्व मे प्रसिद्ध है जब महाप्रभु जगन्नाथ अपने बड़े बही बलभद्र और छोटी बेहेन सुभद्रा के साथ सरे नियमो से परे अपने भक्तो से मिलने श्रीमंदिर से बाहर आते हैं। भगवान् क्या दृश्य मे तो भक्तो के बस मे हूँ वो जहाँ जिस रूप मे मुझे बुलाएँगे मे उनके भक्ति मे लीं होके वहां उस रूप मे उन्हें मिल जाता हूँ। आज के दिन जगन्नाथ महाप्रभु बड़ा दांद मे लाखों भक्तो के बीच नंदीघोष रथ मे पतीतपावन झंडा लहराते हुए अपने मौसी के मिलने जाते हैं ।
continued...
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