Tuesday, August 18, 2009

ॐ शं शानेस्चराय नमः



मैं बहुत बड़ा पंडित या योगी तो नहीं हूँ मगर हर कोशिश करता हूँ के धर्म कर्म मैं अपना मन लगा रखूं। मेरी इसी आदत के चलते मेरा मंदिरों मैं आना जाना लगा रहता है । पिछले शनिवार और रविवार दो दिन छुट्टी थी और मुझे शायद इसी का इंतजार था। बहूत दिनों से मेरे मन मैं एक इच्छा थी के मैं फतेहपुर के शनि धाम हो आऊं तो मुझे मौका मिल गया। शनिवार का दिन था और इससे अच्छा दिन नहीं होता तो मैं सुबह सुबह उठा और नहा धो कर तैयार हो गया। झमझम बारिश के कहते और कुछ १५ अगस्त के चलते सड़को पे लोगों की आवाजाही भी कम मिली। और मैं दोपहर एक बजे तक शनिधाम पहंच गया। वैसे तो मैं दो बार जा चुका हूँ वहां पर भगवन के घर जाना किसको अछा नहीं लगता। और फतेहपुर की विशेषता ये है की मैं जितनी भी बार वहां जाऊँ वहां की शांत और प्राकृतिक सौंदर्यभरा बातावरण मुझे जैसे स्वर्ग सा महसूस होता है। दोपहर का वक्त था इसलिए भीड़ भी कम मिली। शनि महाराज की नभशुम्वि मूर्ती की दर्शन करते ही जैसे साड़ी पीड़ा और दुखो का नाश हो गया।वहां मन्दिर के भीतर पूजा सामग्री और पूजा की बिधि का बिस्तर से बरनन किया गया है तो मुझे आसानी हुई। सभी भक्तो की तरह मैं भी पूजा की थाली हाथो मैं लिए कतार मैं खड़ा हो गयामैं एक बात और बता दूँ शनि मजराज की पूजा की विधि भी अलग होती व्फ्व्फ्ह्व्ल्फ़ फ्फ्ह्ल्सफ्ह ल्फ्ह्स्व्स क्रमानुसार पूजा अर्पण करते समय अपनी थाली मैं से गुड , कला कपड़ा,उड़द और तिल का भेट चढाना पड़ता है । मैंने भी सरे कहे गए पदार्थो को नियम पुर्बक चढाया और शनि भगवन की प्रतिमा की परिक्रमा ki .

पूजा के बाद मैं अदुसरे प्रांगन मैं गया तो वहां भक्तो की एक लम्बी कतार मिली जहाँ श्रद्धालु लाल लुंगी पहने हुए हाथो मैं सरसों का तेल लिए अपने बरी आने का प्रतीक्षा कर रहे थे और अपने बरी आने पर वे शनिदेव की मूर्ति पे तेल अर्पण कर रहे थे। और तब हर एक के जुबान से ॐ शं शानेस्चराय नमः एक स्वर मैं उस बातावरण को एक अलौकिक दिव्य रूप प्रदान कर रहा था। उस अद्भुत और मन को शान्ति देने वाली बातावरण से मैं अपने आप को कैसे दूर रख पता अतः मेरे मैं भी शनिदेव को तेल चढाने की इच्छा जगी तो मैं भी लाल लुंगी और तेल लेके वापस आ गया । वहां मन्दिर परिसर मैं स्नानघर की व्यबस्था मुझे अच्छा लगा जहाँ छोटे बड़े सारे भक्त संकोच से परे लाल लुंगी परिधान करके स्नान करके क़तर मैं बड़ी अनुशासित होके शनिदेव की आराधना मैं लीनथे। और मुझ जैसा मनुष्य को मन की शान्ति के अलावा और क्या चाहिए। मैं भी अपने आप को शनिदेव की सानिध्य मैं समर्पित कर असीम शान्ति की एक बूंद पाने की कोशिश मैं व्यस्त हो गया...

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