(नमो नारायणाय )
शादी के बाद कहीं भी नहीं गया था और ऑफिस से घर और घर से ऑफिस हो के मन भी बहूत थक चूका था। वैसे तो मुझे चेन्नई आये हुए ६ महीने से ज्यादा हो गया है मगर मुझे चेन्नई बोले तो ऑफिस-लोकल ट्रेन और मेरी बीवी के सिवा कुछ ज्यादा ज्ञान नहीं हैं। श्रीमती के रंग कुछ बदलता उससे पहले मैंने सोचा के चलो कहीं हो आते हैं और आपको तो मेरी गन्दी आदत के बारे मे पता ही है , और मेरे दोस्तों ने भी कहा है की मुल्ले की दौड़ मस्जिद तक और मेरी दौड़ किसी मंदिर तक। और मे भी इस कहावत की लाज रखते हुए बालाजी के दर्शन का प्लान बना लिया। क्यूँ की मे कभी गया ही नहीं तो श्रीमतीजी को ये भार सौंप दिया के धुन्दाके बताओ के कैसे जाना है और कहाँ जाना है तो मेरी श्रीमती जो की दो बार तिरुमाला पर्वत पर जा चुकी है, मुझे तुरंत आन्ध्र प्रदेश पर्यटन बिभाग द्वारा प्रचलित सेवा और दर्शन के बारे मे अबगत कराया। इर क्या बात थी म दोनों ने टिकिट कटवा लिया और निर्धारित तारीख पर पर्यटन कार्यालय के ऑफिस पहंच गए। क्यूँ के हमें बताया गया थे के जीन्स और था शर्ट बर्जित है तो मुझे ८०० रुपये का जुरमाना भी सहना पड़ा एक जोड़ी कुरता और पैजामा के रूप मे।
खैर कोई बात नहीं शाम ७ बजे हमारी यात्रा सुरु हुई . टी नगर तिरुपति मंदिर की तरफ हाथ जोड़ कर हमारी बस अपने मंजिल की तरफ बढ़ चली। बस वोल्वो थी और काफी आराम दायक भी थी। क्यूँ की ठण्ड लगने लगी तो नींद भी आ गई। एक अच्छी नींद के बाद करीब १० बजे हमारी गाडी एक होटल के पास रुकी, जगह का नाम तो पता के नहीं मगर जो खाना खाने के लिए रुके थे वो अछा नहीं था । पर करे तो क्या भूक जो लग रही थी तो दोनों ने रात को भी उपमा के साथ मसाला डोसा खाया और वापस गाडी मे बैठ गए। फिर गाड़ी भी चल पड़ी। कुछ डेड घंटे के बाद रात १२ बजे गाड़ी तिरुमलै परबत के निचे पहंच गए। वहां एक होटल मे हमें ठहराया गया और बोला गया के रात के ढाई बजे तैयार होके निकलने को। दो घंटे की आराम के बाद हमने नहा धो के ढाई बजे क़ुइक्क दर्शन के टिकेट के लिए लाइन मे लग गए। सुबह का ठण्ड थी और रिमझिम बारिशो की बूंदों ने हमें झपकी लेनेको मजबूर कर रही थी मगर लोगों की कतार ने हमें जगाये रखा। सुबह के करीब ५ बजे हमारे थुम्ब इम्प्रेस्सिओन के साथ एक ईद कार्ड बना दिया गया (इसके ५० रुपये भी टूर टिकेट मे जुदा हुआ था ) फिर हमें वापस होटल ले जाया गया जहाँ हमने गरम गरम इडली के साथ साम्भर मिला तो जान मे जान आई। फिर क्या था हमें वापस गाड़ी मे बैठ के भगवान् के दर्शन को ले जाया गया। हमारी झूंड का नेतृत्व गाइड रेड्डी साब ने संभाल रखी थी और उनकी पूँछ पकड़ के हम ४० लोग दर्शन को निकल पड़े। रेड्डी साब के साथ हम जैसे ही तिरुमलाई परबत माला के पास पहंचे तो वहां हमें भगवान् के चरणारविन्द नगर पहंचने के लिए आन्ध्र प्रदेश ट्रांसपोर्ट से एक बस की व्यवस्था थी। हम जैसे ही शिखर पर पहंचे जैसे मे भगवन के चरणों मे पहंच गया और मौसम के तो क्या कहने, घने बादलो ने कुछ ऐसा मंज़र बाँधा था के जैसे परबतमालाओ के बीच बसे भगवन के चरणों को जी जान से धोने का मन बनाया हो। काले बादलो ने पूरे पर्बत्मालयों को ढका हुआ था और आंधी भी चल रही थी , मगर भक्तो की भीड़ भी कुछ ऐसा उमड़ा हुआ था के क्या कहूँ। बड़ी सादगी से सब लोग झम झम बारिश मे भीगते हुए मगर बड़े ही शांत स्वभाव से भगवान के गुणगान करते हुए लम्बी लम्बी कतारों मे लगाइ हुए थे। सबके मुख से प्रेम से गोविन्दा गोविंदा की धुन जैसे समुच्चा बाताबरण को ब्रह्ममय और नैसर्गिक बना रही थी। मे भी सपत्निक भीड़ मे भगवन के दर्शन को चल पड़ा। झम झम बारिश के रूप मे जैसे भगवन बालाजी हमें अपने पावन आशीर्वाद से लाबालब कर रहे थे और तेज़ आंधी से जैसे हमारे सारे दुखो का हरण कर रहे थे। बड़े ही सुआयोजन के साथ लोग आगे बढ़ते गए और हमें भी दर्शन का अवसर मिला। करीब १०० मीटर की दूरी से भगवन की ब्रह्मप्रतिमा के दर्शन से जैसे मे मंत्रमुग्ध हो गया। क्या दिव्या दृश्य था भगवन के दोनों चरणों के पास दो पंडित बैठ के अनवरत मंत्रो का जाप कर रहे थे और सारे भीड़ से गोविंदा गोविंदा की आवाज़ से जैसे मे एल अलग सी दुनिया मे पहंच गया और मे मन ही मन बालाजी भगवन को धन्यवाद देने लगा। मंदिर के कतार से लगने से पहले मैंने अपने सर मुंडवाने का फैसला भी किया था तो हमारे गुइदे रेड्डी साब से हमें वो भी करवाया और हमें २० रुपये भी देने पड़े ( आपके जानकारी के लिए बता दूँ के मंदिर परिसर मे मुंडन औं स्नान का प्रबंध भी है और ये एक मुफ्त सेवा हैं मंदिर प्रशासन की तरफ से , पर हम क्यूँ की सीमित समय काल मे सब काम करना था तो रेड्डी साब के जुगाड़ की वजह से हम २० रुपये मे वो भी कर लिया)। सामान्यतः जैस एहुमारे मंदिरों मे पूजा का प्रबंध होता है वहां मगर ऐसा कुछ नहीं है और भगवन की पूजा आराधना पूर्वनिर्धारित सूची के अनुसार सिर्फ चुने हुए पुजारी करते हैं। और मैंने सुना है कीइ भगवन की पूजा की सूची सुबह ३ बजे से सुरु हो जाती है और रात के १० बजे भगवन का गर्भगृह बंदकर दी जाती है।
खैर हम भी गोविंदा गोविंदा की गूँज मे अपनी आवाज मिलते हुए दर्शन का आनंद लिया और प्रसाद लेने हेतु मंदिर के दुसरे भवन मे लड्डू लेके बस की तरफ पहंच बढ़ गए। वहां से हम अपनी बस की तरफ बढ़ गए और होटल पहंच गए। वापसी मे हमारी बस माँ पद्मावती मंदिर पे दर्शन को रुकी मगर क्यों के दोनों बहूत थके हुए थे तो हमने बस मे रहना ही ठीक समझा(तब मे मन ही मन बालाजी से पद्मावती दर्शन को न जाने के लिए माफ़ी मांग ली)। फिर क्या था हमारी बस हमें चेन्नई की तरफ बढ़ गयी और करीब ७ बजे हम गुइंद्य स्टेशन पे पहंच गए थे। हमने फिर नमो नारायणाय के मंत्र के साथ आपने दीनचय्र को nikal पड़े और भीड़ मे फिर खो गए ...
शादी के बाद कहीं भी नहीं गया था और ऑफिस से घर और घर से ऑफिस हो के मन भी बहूत थक चूका था। वैसे तो मुझे चेन्नई आये हुए ६ महीने से ज्यादा हो गया है मगर मुझे चेन्नई बोले तो ऑफिस-लोकल ट्रेन और मेरी बीवी के सिवा कुछ ज्यादा ज्ञान नहीं हैं। श्रीमती के रंग कुछ बदलता उससे पहले मैंने सोचा के चलो कहीं हो आते हैं और आपको तो मेरी गन्दी आदत के बारे मे पता ही है , और मेरे दोस्तों ने भी कहा है की मुल्ले की दौड़ मस्जिद तक और मेरी दौड़ किसी मंदिर तक। और मे भी इस कहावत की लाज रखते हुए बालाजी के दर्शन का प्लान बना लिया। क्यूँ की मे कभी गया ही नहीं तो श्रीमतीजी को ये भार सौंप दिया के धुन्दाके बताओ के कैसे जाना है और कहाँ जाना है तो मेरी श्रीमती जो की दो बार तिरुमाला पर्वत पर जा चुकी है, मुझे तुरंत आन्ध्र प्रदेश पर्यटन बिभाग द्वारा प्रचलित सेवा और दर्शन के बारे मे अबगत कराया। इर क्या बात थी म दोनों ने टिकिट कटवा लिया और निर्धारित तारीख पर पर्यटन कार्यालय के ऑफिस पहंच गए। क्यूँ के हमें बताया गया थे के जीन्स और था शर्ट बर्जित है तो मुझे ८०० रुपये का जुरमाना भी सहना पड़ा एक जोड़ी कुरता और पैजामा के रूप मे।
खैर कोई बात नहीं शाम ७ बजे हमारी यात्रा सुरु हुई . टी नगर तिरुपति मंदिर की तरफ हाथ जोड़ कर हमारी बस अपने मंजिल की तरफ बढ़ चली। बस वोल्वो थी और काफी आराम दायक भी थी। क्यूँ की ठण्ड लगने लगी तो नींद भी आ गई। एक अच्छी नींद के बाद करीब १० बजे हमारी गाडी एक होटल के पास रुकी, जगह का नाम तो पता के नहीं मगर जो खाना खाने के लिए रुके थे वो अछा नहीं था । पर करे तो क्या भूक जो लग रही थी तो दोनों ने रात को भी उपमा के साथ मसाला डोसा खाया और वापस गाडी मे बैठ गए। फिर गाड़ी भी चल पड़ी। कुछ डेड घंटे के बाद रात १२ बजे गाड़ी तिरुमलै परबत के निचे पहंच गए। वहां एक होटल मे हमें ठहराया गया और बोला गया के रात के ढाई बजे तैयार होके निकलने को। दो घंटे की आराम के बाद हमने नहा धो के ढाई बजे क़ुइक्क दर्शन के टिकेट के लिए लाइन मे लग गए। सुबह का ठण्ड थी और रिमझिम बारिशो की बूंदों ने हमें झपकी लेनेको मजबूर कर रही थी मगर लोगों की कतार ने हमें जगाये रखा। सुबह के करीब ५ बजे हमारे थुम्ब इम्प्रेस्सिओन के साथ एक ईद कार्ड बना दिया गया (इसके ५० रुपये भी टूर टिकेट मे जुदा हुआ था ) फिर हमें वापस होटल ले जाया गया जहाँ हमने गरम गरम इडली के साथ साम्भर मिला तो जान मे जान आई। फिर क्या था हमें वापस गाड़ी मे बैठ के भगवान् के दर्शन को ले जाया गया। हमारी झूंड का नेतृत्व गाइड रेड्डी साब ने संभाल रखी थी और उनकी पूँछ पकड़ के हम ४० लोग दर्शन को निकल पड़े। रेड्डी साब के साथ हम जैसे ही तिरुमलाई परबत माला के पास पहंचे तो वहां हमें भगवान् के चरणारविन्द नगर पहंचने के लिए आन्ध्र प्रदेश ट्रांसपोर्ट से एक बस की व्यवस्था थी। हम जैसे ही शिखर पर पहंचे जैसे मे भगवन के चरणों मे पहंच गया और मौसम के तो क्या कहने, घने बादलो ने कुछ ऐसा मंज़र बाँधा था के जैसे परबतमालाओ के बीच बसे भगवन के चरणों को जी जान से धोने का मन बनाया हो। काले बादलो ने पूरे पर्बत्मालयों को ढका हुआ था और आंधी भी चल रही थी , मगर भक्तो की भीड़ भी कुछ ऐसा उमड़ा हुआ था के क्या कहूँ। बड़ी सादगी से सब लोग झम झम बारिश मे भीगते हुए मगर बड़े ही शांत स्वभाव से भगवान के गुणगान करते हुए लम्बी लम्बी कतारों मे लगाइ हुए थे। सबके मुख से प्रेम से गोविन्दा गोविंदा की धुन जैसे समुच्चा बाताबरण को ब्रह्ममय और नैसर्गिक बना रही थी। मे भी सपत्निक भीड़ मे भगवन के दर्शन को चल पड़ा। झम झम बारिश के रूप मे जैसे भगवन बालाजी हमें अपने पावन आशीर्वाद से लाबालब कर रहे थे और तेज़ आंधी से जैसे हमारे सारे दुखो का हरण कर रहे थे। बड़े ही सुआयोजन के साथ लोग आगे बढ़ते गए और हमें भी दर्शन का अवसर मिला। करीब १०० मीटर की दूरी से भगवन की ब्रह्मप्रतिमा के दर्शन से जैसे मे मंत्रमुग्ध हो गया। क्या दिव्या दृश्य था भगवन के दोनों चरणों के पास दो पंडित बैठ के अनवरत मंत्रो का जाप कर रहे थे और सारे भीड़ से गोविंदा गोविंदा की आवाज़ से जैसे मे एल अलग सी दुनिया मे पहंच गया और मे मन ही मन बालाजी भगवन को धन्यवाद देने लगा। मंदिर के कतार से लगने से पहले मैंने अपने सर मुंडवाने का फैसला भी किया था तो हमारे गुइदे रेड्डी साब से हमें वो भी करवाया और हमें २० रुपये भी देने पड़े ( आपके जानकारी के लिए बता दूँ के मंदिर परिसर मे मुंडन औं स्नान का प्रबंध भी है और ये एक मुफ्त सेवा हैं मंदिर प्रशासन की तरफ से , पर हम क्यूँ की सीमित समय काल मे सब काम करना था तो रेड्डी साब के जुगाड़ की वजह से हम २० रुपये मे वो भी कर लिया)। सामान्यतः जैस एहुमारे मंदिरों मे पूजा का प्रबंध होता है वहां मगर ऐसा कुछ नहीं है और भगवन की पूजा आराधना पूर्वनिर्धारित सूची के अनुसार सिर्फ चुने हुए पुजारी करते हैं। और मैंने सुना है कीइ भगवन की पूजा की सूची सुबह ३ बजे से सुरु हो जाती है और रात के १० बजे भगवन का गर्भगृह बंदकर दी जाती है।
खैर हम भी गोविंदा गोविंदा की गूँज मे अपनी आवाज मिलते हुए दर्शन का आनंद लिया और प्रसाद लेने हेतु मंदिर के दुसरे भवन मे लड्डू लेके बस की तरफ पहंच बढ़ गए। वहां से हम अपनी बस की तरफ बढ़ गए और होटल पहंच गए। वापसी मे हमारी बस माँ पद्मावती मंदिर पे दर्शन को रुकी मगर क्यों के दोनों बहूत थके हुए थे तो हमने बस मे रहना ही ठीक समझा(तब मे मन ही मन बालाजी से पद्मावती दर्शन को न जाने के लिए माफ़ी मांग ली)। फिर क्या था हमारी बस हमें चेन्नई की तरफ बढ़ गयी और करीब ७ बजे हम गुइंद्य स्टेशन पे पहंच गए थे। हमने फिर नमो नारायणाय के मंत्र के साथ आपने दीनचय्र को nikal पड़े और भीड़ मे फिर खो गए ...