Wednesday, November 24, 2010

( गोविंदा गोविंदा )

(नमो नारायणाय )
शादी के बाद कहीं भी नहीं गया था और ऑफिस से घर और घर से ऑफिस हो के मन भी बहूत थक चूका था। वैसे तो मुझे चेन्नई आये हुए ६ महीने से ज्यादा हो गया है मगर मुझे चेन्नई बोले तो ऑफिस-लोकल ट्रेन और मेरी बीवी के सिवा कुछ ज्यादा ज्ञान नहीं हैं। श्रीमती के रंग कुछ बदलता उससे पहले मैंने सोचा के चलो कहीं हो आते हैं और आपको तो मेरी गन्दी आदत के बारे मे पता ही है , और मेरे दोस्तों ने भी कहा है की मुल्ले की दौड़ मस्जिद तक और मेरी दौड़ किसी मंदिर तक। और मे भी इस कहावत की लाज रखते हुए बालाजी के दर्शन का प्लान बना लिया। क्यूँ की मे कभी गया ही नहीं तो श्रीमतीजी को ये भार सौंप दिया के धुन्दाके बताओ के कैसे जाना है और कहाँ जाना है तो मेरी श्रीमती जो की दो बार तिरुमाला पर्वत पर जा चुकी है, मुझे तुरंत आन्ध्र प्रदेश पर्यटन बिभाग द्वारा प्रचलित सेवा और दर्शन के बारे मे अबगत कराया। इर क्या बात थी दोनों ने टिकिट कटवा लिया और निर्धारित तारीख पर पर्यटन कार्यालय के ऑफिस पहंच गए। क्यूँ के हमें बताया गया थे के जीन्स और था शर्ट बर्जित है तो मुझे ८०० रुपये का जुरमाना भी सहना पड़ा एक जोड़ी कुरता और पैजामा के रूप मे।
खैर
कोई बात नहीं शाम बजे हमारी यात्रा सुरु हुई . टी नगर तिरुपति मंदिर की तरफ हाथ जोड़ कर हमारी बस अपने मंजिल की तरफ बढ़ चली। बस वोल्वो थी और काफी आराम दायक भी थी। क्यूँ की ठण्ड लगने लगी तो नींद भी आ गई। एक अच्छी नींद के बाद करीब १० बजे हमारी गाडी एक होटल के पास रुकी, जगह का नाम तो पता के नहीं मगर जो खाना खाने के लिए रुके थे वो अछा नहीं था । पर करे तो क्या भूक जो लग रही थी तो दोनों ने रात को भी उपमा के साथ मसाला डोसा खाया और वापस गाडी मे बैठ गए। फिर गाड़ी भी चल पड़ी। कुछ डेड घंटे के बाद रात १२ बजे गाड़ी तिरुमलै परबत के निचे पहंच गए। वहां एक होटल मे हमें ठहराया गया और बोला गया के रात के ढाई बजे तैयार होके निकलने को। दो घंटे की आराम के बाद हमने नहा धो के ढाई बजे क़ुइक्क दर्शन के टिकेट के लिए लाइन मे लग गए। सुबह का ठण्ड थी और रिमझिम बारिशो की बूंदों ने हमें झपकी लेनेको मजबूर कर रही थी मगर लोगों की कतार ने हमें जगाये रखा। सुबह के करीब ५ बजे हमारे थुम्ब इम्प्रेस्सिओन के साथ एक ईद कार्ड बना दिया गया (इसके ५० रुपये भी टूर टिकेट मे जुदा हुआ था ) फिर हमें वापस होटल ले जाया गया जहाँ हमने गरम गरम इडली के साथ साम्भर मिला तो जान मे जान आई। फिर क्या था हमें वापस गाड़ी मे बैठ के भगवान् के दर्शन को ले जाया गया। हमारी झूंड का नेतृत्व गाइड रेड्डी साब ने संभाल रखी थी और उनकी पूँछ पकड़ के हम ४० लोग दर्शन को निकल पड़े। रेड्डी साब के साथ हम जैसे ही तिरुमलाई परबत माला के पास पहंचे तो वहां हमें भगवान् के चरणारविन्द नगर पहंचने के लिए आन्ध्र प्रदेश ट्रांसपोर्ट से एक बस की व्यवस्था थी। हम जैसे ही शिखर पर पहंचे जैसे मे भगवन के चरणों मे पहंच गया और मौसम के तो क्या कहने, घने बादलो ने कुछ ऐसा मंज़र बाँधा था के जैसे परबतमालाओ के बीच बसे भगवन के चरणों को जी जान से धोने का मन बनाया हो। काले बादलो ने पूरे पर्बत्मालयों को ढका हुआ था और आंधी भी चल रही थी , मगर भक्तो की भीड़ भी कुछ ऐसा उमड़ा हुआ था के क्या कहूँ। बड़ी सादगी से सब लोग झम झम बारिश मे भीगते हुए मगर बड़े ही शांत स्वभाव से भगवान के गुणगान करते हुए लम्बी लम्बी कतारों मे लगाइ हुए थे। सबके मुख से प्रेम से गोविन्दा गोविंदा की धुन जैसे समुच्चा बाताबरण को ब्रह्ममय और नैसर्गिक बना रही थी। मे भी सपत्निक भीड़ मे भगवन के दर्शन को चल पड़ा। झम झम बारिश के रूप मे जैसे भगवन बालाजी हमें अपने पावन आशीर्वाद से लाबालब कर रहे थे और तेज़ आंधी से जैसे हमारे सारे दुखो का हरण कर रहे थे। बड़े ही सुआयोजन के साथ लोग आगे बढ़ते गए और हमें भी दर्शन का अवसर मिला। करीब १०० मीटर की दूरी से भगवन की ब्रह्मप्रतिमा के दर्शन से जैसे मे मंत्रमुग्ध हो गया। क्या दिव्या दृश्य था भगवन के दोनों चरणों के पास दो पंडित बैठ के अनवरत मंत्रो का जाप कर रहे थे और सारे भीड़ से गोविंदा गोविंदा की आवाज़ से जैसे मे एल अलग सी दुनिया मे पहंच गया और मे मन ही मन बालाजी भगवन को धन्यवाद देने लगा। मंदिर के कतार से लगने से पहले मैंने अपने सर मुंडवाने का फैसला भी किया था तो हमारे गुइदे रेड्डी साब से हमें वो भी करवाया और हमें २० रुपये भी देने पड़े ( आपके जानकारी के लिए बता दूँ के मंदिर परिसर मे मुंडन औं स्नान का प्रबंध भी है और ये एक मुफ्त सेवा हैं मंदिर प्रशासन की तरफ से , पर हम क्यूँ की सीमित समय काल मे सब काम करना था तो रेड्डी साब के जुगाड़ की वजह से हम २० रुपये मे वो भी कर लिया)। सामान्यतः जैस एहुमारे मंदिरों मे पूजा का प्रबंध होता है वहां मगर ऐसा कुछ नहीं है और भगवन की पूजा आराधना पूर्वनिर्धारित सूची के अनुसार सिर्फ चुने हुए पुजारी करते हैं। और मैंने सुना है कीइ भगवन की पूजा की सूची सुबह ३ बजे से सुरु हो जाती है और रात के १० बजे भगवन का गर्भगृह बंदकर दी जाती है।

खैर हम भी गोविंदा गोविंदा की गूँज मे अपनी आवाज मिलते हुए दर्शन का आनंद लिया और प्रसाद लेने हेतु मंदिर के दुसरे भवन मे लड्डू लेके बस की तरफ पहंच बढ़ गए। वहां से हम अपनी बस की तरफ बढ़ गए और होटल पहंच गए। वापसी मे हमारी बस माँ पद्मावती मंदिर पे दर्शन को रुकी मगर क्यों के दोनों बहूत थके हुए थे तो हमने बस मे रहना ही ठीक समझा(तब मे मन ही मन बालाजी से पद्मावती दर्शन को न जाने के लिए माफ़ी मांग ली)। फिर क्या था हमारी बस हमें चेन्नई की तरफ बढ़ गयी और करीब ७ बजे हम गुइंद्य स्टेशन पे पहंच गए थे। हमने फिर नमो नारायणाय के मंत्र के साथ आपने दीनचय्र को nikal पड़े और भीड़ मे फिर खो गए ...




Saturday, November 20, 2010

माँ का क़र्ज़

शाम का समय था और मे थका हारा घर पहंचा और क्यों की मेरा मूड था खाना बनाने का तो मे रसोई की तरफ बढ़ गया। अब श्रीमती जी बड़ी खुस हुईं पर qमैंने कहा की एक प्याली चाय की मिल जाती तो अछा होता तो तुरंत चाय भी मिल गई। अब काम eकरवाना किसको पसंद नहीं , खैर कोई बात नहीं जब मुझे ही मूड था बनाने का तो कुछ और नहीं सोचा। मज़े की qबात यह थी की तब तक चावल और दाल बन चूका था और मुझे सिर्फ तरकारी बनानी थी। मे झटपट सब्जी eकटाई ख़तम कर कड़ाई बिठाया और सब्जी चढ़ाके टीवी के सामने बैठ गया। ऐसे ही चैनल बदलते बदलते मे आंचलिक मेरे qमातृभासा ओडिया चैनल तरंग पे रुक गया क्यों की उसके एक कार्यक्रम जिसका नाम है "Excuse Me"आ रहा था। उसपे एक हास्य कलाकार ने हसाते हसाते एक संगीन बात कहदी जो मेरे दिल को छु गई और वही मे आज यहाँ लिख रहा हूँ ...
बुजुर्गो पर हो रहे अत्याचार और ब्याभिचार के बारे मे तो आप rलोगों ने बहूत साडी कहानियाँ , फिल्में और किसे सुने होंगे ये एक अलग एहसास होगा। एक बार एक बेटे ने अपने माँ को बोला के माँ तुने बड़े कष्ट सह कर मुझे इस लायक बनाया के मे आज दुनिया के साथ कंधे से कन्धा मिला के चल पा रहा हूँ और मे बड़ा भाग्यशाली हूँ के मुझे तेरा साया मिला। और आज मे जो भी कुछ हूँ तेरी वजह से और मे तेरा ये क़र्ज़ कैसे उतरून और क्या करूँ ऐसा के तेरा क़र्ज़ , उपकार मे उतार सकूँ ? इस्पे माँ ने बोला के बेटा कोई बात नहीं , तुने इतना सोचा और कहा तो मुझे दुनिया मिल गई , मुझे और कुछ नहीं चाहिए। पर बेटा कहाँ मान ने वाला था , उसने तो जिद ही पकड़ ली थी की क़र्ज़ उतार के ही रहेगा तो मान ने कहा ठीक है अगर ऐसा करने से तुझे अच्छा लगेगा तो एक काम करना , आज रात तो तू मेरे साथ सो जाना। तो बेटे ने कहा ठीक है... दिन गुज़रा और रात हो गई तो बेटे ने भर पेट बोला के कोईया माँ के के साथ बिस्तर पे लेट गया। रात का पहला प्रहर था के माँ ने बेटे के ऊपर एक गिलाश पानी दाल दिया। बेटे को आई अछी नींद टूट गई और उसने माँ से कहा के माँ सो जाओ को बात नहीं है। माँ ने भी बात के ध्यान नहीं दिया और सो गई। रात का दूसरा प्रहार था और माँ ने बेटे के ऊपर दोसरा गिलास पानी डाल दिया तो बेटे ने कहा माँ सोने दो ऐसा मत करो। माँ बाते फिर सो गए। कुछ देर हुए तो माँ ने फिर एक गिलास पानी दाल दिया। इस बार बेटे ने गिस्से से उठा पर माँ से कुछ बोल नहीं पाया तो माँ ने एक मृदु हास्य दिया और सो गई। देर रात ३ से ४ का वक़्त होगा माँ ने ५ब गिलास पानी दाल दिया तो बेटा गुर्राया सा उठा और माँ को बोला क्या ये घडी घी मजाख बना रखा है , सोनी भी नहीं देती आराम से। एक तो मैंने तेरा क़र्ज़ उतारने पे तुला हुआ हूँ और तू है की मुझे आराम से सोने भी नहीं देती। इस बार माँ ने अपनी चुप्पी तोड़ी और कहा " बेटा एक तो तुम मेरे क़र्ज़ उतारने की बात करते हो और मुझे दांते भी हो। मैंने तुझपे ५ बार पानी ही डाला तो एक रात मे तुने इतनी बातें मुझे सुनाया। पर बेटे तुने तो सालों मुझपे ऐसे कई बार पानी फेका , पानी नहीं पेसाब किया पर मैंने तो आज तक तुझे कुछ नहीं कहा ... इतने कहते ही बेटे ने रोते बिलकते माँ के कदमो मे गिर गया और माँ से माफ़ी मांगने लगा और कह माँ मे नादाँ हूँ और मे क्या कोई भी इंसान अपनी माँ का क़र्ज़ कभी नहीं उतार सकता... क्यों सही कहा न...

Monday, November 15, 2010

मेरी सक्शीयत


इतना तो यकीन है मुझे अपनी सक्सीयत पर
भूल जाये मुझे कोई जो मिलके ऐसा नहीं देखा ...

Sunday, November 14, 2010

Professional Etiquettes

Yesterday I got a call from our Chennai Service centre and the manager was in different mood to ask the manpower requirements from his locations but the tone and the pitch of the manager’s voice was different from his natural way of communication and I was little shocked to listen to the selection of word in the conversation by the manager. Before to that the, manager was well behaved and was in my list of well managed and well carried out manager’s list. But I managed and maintained my line of communication in the call. After i finished the call Ram sir came back to his seat along with his boss (both of them sit besides my bay in the office) and he told me shouting on anybody provides no solution to an issue and he seemed much disappointed. I, then got an intuition that they both were in the same call and I asked him that were they in the con-call and the answer was a big “yes” and for few seconds I was disappointed that the call was witnessed by the entire pan India location managers. And being an Hr professional I felt bad for the manager and the image was rotten among all the managers in RIL. The big boss too said that the manager has bad reputation about the location manager and the other manager said that the manpower crisis in his location is because of the bad behavior and the ill selection words in the work place by the manager and many more comments like that one followed for the manager and the 7 year experienced manager’s was ruined in minutes. The manager himself is unaware of the damage he faced but being an Hr professional I felt very bad. I felt bad not because of the manager’s reaction on me but on the lack of communication in the manager. The manager has 7 years of experience in his own functional area and he is has fair record in his career too but I what I felt was the importance of corporate communication rather than the human behavior. The word corporate communication is much important when you are in a managerial position and there are a group of people who are there to follow you. I have always put much importance to communication skills and in corporate culture you are demarcated in the way you communicate and it really makes a big difference. Anyway I feel that apart from telephone etiquettes and e mail etiquettes we need to have a good choice of words in the corporate communication and I am sure apart from our regular functional area the communication will surely add up to success in anybody’s career. So better your communication, better a person and better a career yours, what you say ?

Saturday, November 13, 2010

मुझे कुछ टाइम दो बस...

मुझे अकेला क्यूँ लग रहा है आज ये सोचने बैठा तो मुझे कुछ यूँ लगा के ज्यादा करीबीमे कुछ या तो भूलता जा रहा हूँ या कुछ ज्यादा करीबी से अपना रहा हूँफिर मुझेएहसास हुआ के मे तो यहाँ दक्षिण मे हूँ और मेरा दोस्तों का ताँता तो उत्तर मे कहीं छूट गया हैखिअर कोई बात नहीं किसीने सच हि कहा हैं के आदमी खून के अलावा सभी रिश्ते खुद बनता हैं और मुझे भरोसा है की मे भी बना लूँगाऔर वैसे भी सुबह से शाम तक तो कार्यालय और शाम ढलते ही भार्यालय से किसको छुटकारा मिला है जो दोस्तों की बात सोचेगापर मे तो ऐसा कभी था हि नहींदोस्तों का साथ मिले तो दुनिया भूलने वाला मे आज कुछ अपने असली रंग से बहूत दूर कुछ खोया खोया सा लग रहा हूँ। पर अब भी मे कुछ बूरा दोस्त भी नहीं हूँ और मुझे कुछ टाइम दो बस...

Science of being Happy

I know I am not a psychiatrist but I know the interim feelings of human psychology। Many a times it happens that people don’t care about others feelings and they do the same one or the other reason and many a times they don’t know what they are doing and the result always becomes a disaster in human relations। Please don’t misunderstand me as I am a married guy now and this is not at all the regular family fights। Our thoughts have become so narrow minded that in the tune to earn little joy in our heart we destroy the second persons feelings leading to creates distance which takes much longer period of time to vanish। It may take some time to get that healing done but has not it made your life smaller with the time you spend in resolving issues। Anyway there are people who are still not ready to accept that life is there to live & not to resolve issues। Anyway let people come out of darkness and let there be light…