मैंने कहा की मैं जिंदा हूँ अभी
और है सांसें मुझमें भी कुछ बाकि,
न जाने कितने दिनों से खुसी को तलाश रहा हूँ
और कर रहा हूँ इंतज़ार मैं दिन कम अपने.
जालिम मोहब्बत के नाम पे केहर क्यों बरसाती है
जिंदा इस जिस्म मैं मेरे रूह को क्यों जलाती है
न है चैन और न सुकून इस दिल-ऐ-नादाँ को मेरे
फिर भी जिंदा इसकी ज़हन मे एहसास एक मोहब्बत क्यों है ।
कर बुलंद इरादे अपने अब भी उम्मीद के सहारे खड़ा हूँ
खुदा के रास्ते और अपने जिद पे कुछ ऐसे अदा हूँ
बेगैरत को उसकी, किस्मत और बनाके मंजिलो को अशिआन
दिल मैं शराफत इतनी की बेवफाई को उसकी दिल्ली मोहब्बत बताया है...
हम जिंदा हैं और इसीलिए मोहब्बत जिंदा है - मुर्दादिल क्या खाक मोहब्बत किया करते हैं!
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