समय पानी के जैसा बह गया है। यूँ तो जीवन भी अपने गंतब्य पथ पर आगे बढ़ गया है पर फिर भी कुछ न कर पाने का एक दुखद अनुभव मन मस्तिस्क में चुभ रहा है। और वो है अपने जगह और अपने लोगों के लिए कुछ न कर पाना।
समय के साथ दादा दादी दोनों परलोक सिधार गए.. और चाचा अब अपने स्वार्थ के लिए पिता सामान बड़े भाई से भी बत्तमीजी करने से बाज नहीं आ रहा। पैसा और संपत्ति के समक्ष वो भावनाओ और रक्त संपर्क भूल गया है। भगवान् सद्बुद्धि दे अन्यथा हम भाइयों को ही उसे सत्मार्ग में लाना पड़ेगा।
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