आज सुबह से मूड अजीब था। पगले मैं ये नहीं समझ पा रहा था के मैं खुस हूँ या दुखी। यूँ तो आज फिर एक बर्ष बीत गए हमें इस दिन को पिछले साल जीए हुए मगर आज कुछ अलग सा लग रहा था। मैं हैरान था और मन ही मन एक अंतर्द्वंद में व्यस्त था के ये हो क्या हो रहा है मेरे अन्दर ? अक्सर खुस रहने वाला मेरा ये पगला मन जाने ऐसा ब्यबहार क्यूँ कर रहा है। खैर जैसे तैसे व्यस्त सुबह गुजरा मगर मन मेरा काम पे जाने को बिलकुल तैयार नहीं हुआ। मैंने भी कहा आज इसकी भी सुन लेते है . तो जनाब ख़राब स्वास्थय का बहाना लिए हमने मेरे उपराधिकारी को अपनी बड़ी कुत्षित भावना से अबगत कराया और छुट्टी ले ली। जैसे अचानक शाम को बर्रिश हो जाये तो पकोड़े का मन होता है वैसे ही मन में आया के जो बड़े दिन हुए नहीं हुआ वो आज कर लिया जाये। जैसे बिल्ली को दूध वैसे मुझे किसी मंदिर में भगवन दर्शन ; फिर क्या था हम निकल पड़े चेन्नई की सबसे पुरानि शिव मंदिर की और।
चल पड़ा मैं सुप्रसिद्ध कपालीस्वर मंदिर की तरफ जो की मेरे घर के बिपरीत दिशा मैं लगभग 21 किलोमीटर है। पहंचते पहंचते दिन के साढ़े ग्यारह बज गए। सूरज तो नहीं थे आकाश मैं मगर गर्मी थोड़ी बढ़ गयी थी कुछ दूर चलने के बाद बिशाल और भव्य मंदिर के दर्शन हुए। मंदिर की भाब्याता देखते ही बनता है। मंदिर के मुख्य द्वार पर पहंचते ही मैं स्तब्ध रह गया। जैसे दक्षिण भारतीय मंदिरों मैं गर्भगृह से अधिक प्रबेह द्वार में अद्भुत कलाकारियाँ देखने को मिलती है यहाँ भी उसका उदहारण देखने को मिला। मुख्या द्वार पर पहंच के मैं अंततः 3-4 मिनट स्थाणु बन गया। बिशाल्काय मुख्या द्वार पर कुशली करिगरों का अतुलनीय कारिगरी को निहारता ही रहा। जैसे कोई दीन प्रभु को सामने खडा देख के अपना अपा खो बैठता है वैसे ही में कुछ समय के लिए कहीं खो गया और प्रभु को शत शत नमन करने लगा। द्वार पर भिन्न भिन्न समय मैं पुराणों मैं बर्णित देव कथायों सुन्दर और कलात्मक कारीगरी से जैसे जीबित कर रखा है। खैर मैं फिर में आया और मंदिर के अन्दर दाखिल हुआ। मंदिर मैं मुख्य देब शिवशम्भु के साथ साथ साथ पार्वती जी और मेरे प्रिय गणपति के साथ कार्तिकेय महाप्रभू भी बिराजमान है। मंदिर मैं साज सज्जा और मंदिर की पवित्रता की बरनना मेरे कलम नहीं कर सकते। मंदिर के अन्दर पहंचा तो नंदी महाराज के दर्शन हुए। उनको नमन करते हुए मैंने उनके कान के मैं मैंने अपनी ब्यथा प्रकट की और आगे बढ़ गया। जैसे की मान्यता है की नंदी महाराज से कही बातें शिवशम्भू तक पहंच जाती है मैंने अपना शीश झुकाते हुए शम्भू के दर्शन हेतु आगे बाधा। पहले कर्पगामाम्बाल ( माता पारवती के एक रूप ) है उनके दर्शन हुए और फिर शम्भू के दर्शन हुए। पुष्प और बेल बेल के पत्तो से सुसज्जित शिवलिंग के दर्शन मात्र हि मेरे सारे पीड़ा दूर हो गए। मेरा श्रम भी लाघव हुआ और जो एक क्लान्ति थी शरीर और मन मैं वो सब दूर हुए और मैं तृप्त मन वापस घर को निकला। मंदिर से निकके झूमते झूमते प्रसाद लिया और थोडा जलाहार करके मैं घरको निकला।
वैसे मैं ये उल्लेख करना चाहूँगा के आजकल की भाग दौड़ भरी जीवन मैं हम अपने लिए जीते कहाँ है। दिन के 24 घंटे मैं से 18-20 घंटे हम वो कोम्पनी के लिए जीते हैं गहाँ हम काम करते हैं और बाकि का टाइम अगले दिन काम पे जाने के लिए तयारी मैं काट देते हैं। कोई किसी से कोई किसी से अपना मन बहलाता है तो इस गरीब को भक्ति मैं मस्ती मिलती है। और इसी लालसा को मनमे लिए मैं इधर उधर मेरे आराध्य देवी देवताओं के दर्शन को तरसता हूँ और मिल जाये मौका तो फिर साड़ी दुनियादारी एक तरफ और मेरी मस्ती एक तरफ ...
जय शिवशम्भू
बम बम भोले
हर हर महादेव